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Thursday, January 2, 2020

कौन है मुकेश साहनी

कौन है मुकेश साहनी

दरभंगा‌  जिले के सुपौल के रहने वाले मुकेश 19 साल की उम्र में मुंबई भाग गए थे। जिसने शाहरुख-सलमान की फिल्मों के लिए ‌किया काम। मुकेश अपने एक दोस्त के साथ मुंबई भागे थे, हालांकि चंद दिनों बाद ही अपने पिता जीतन राम के पास वापस लौट आए। छह महीने बाद वह दोबारा मुंबई चले गए। उनका कहना ‌‌था कि उन्होंने मुंबई में जो आजादी 'महसूस' की थी, वह सुपौल में नहीं मिली। मुंबई में शुरुआत में उन्होंने एक कॉस्मेटिक कंपनी में सेल्समैन काम किया। कुछ समय बाद वे टीवी शो और फिल्मों के लिए सेट बनाने वाली एक कंपनी से जुड़ गए। उन्हें नए धंधे में सफलता मिली और मुकेश सिनेवर्ल्ड प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी कंपनी बना ली। मुकेश से नीतिन देसाई और उमंग कुमार जैसे सफल सेट ‌डिजाइनरों के साथ भी काम किया। देसाई ने ही उन्हें शाहरुख खान की फिल्म 'देवदास' का काम दिलाया। मुकेश का कहना है कि उन्होंने सूरज बड़जात्या की आने वाली फिल्‍म 'प्रेम रतन धन पायो' का सेट भी बनाया।

कौन है मुकेश साहनी

मुकेश साहनी

मुकेश साहनी


पैसो की तंगी के कारण छोड़ा दरभंगा

सन 1999 लड़के की उम्र 18 साल हो गई थी, घर में तंगी थी और पढ़ाई में मन के बराबर लगता था. फिर लड़के ने एक फैसला किया. वही फैसला जो हर महत्वाकांक्षी लड़का करता है, घर छोड़ने का फैसला। घर से बाहर किसी दूर शहर में नौकरी करने जाने का फैसल और बिहार-यूपी के ऐसे लड़कों के लिए दूर शहर पहले कोलकाता हुआ करता था और अब मुंबई है। लड़के ने मुंबई की राह चुनी, कॉस्मेटिक दुकान पर सेल्समैन वहाँ छह महीने तक नौकरी की, लेकिन फिर घर की याद सताने लगी, तो नौकरी छोड़ी और साथ ही छोड़ दिया मुंबई शहर. लौट आया दरभंगा, लेकिन स्थिति जस की तस थी  फिर से बगावत का मन किया, फिर बगावत की और इस बार भी ठीहा मुंबई ही बनी, लेकिन लड़का इस बार सेल्स मैन नहीं बना। एक जनरल स्टोर में नौकरी की. 900 रुपये महीने की. करीब एक साल तक. लेकिन मुंबई मायावी शहर है, हर एक को फिल्मों की ओर खींचने की कोशिश करता है. लड़का भी इससे  नहीं पाया.


कौन है मुकेश साहनी

सुपरवाइजर से कॉन्ट्रैक्टर बनने की कहानी
फिल्मी दुनिया की चकाचौंध में खुद का अस्तित्व तलाशने की जुगत शुरू हुई. वो दौर था 2001 का. मुंबई के मायावी जगत में बन रही एक फिल्म के किस्से मशहूर हो रहे थे।  फिल्म थी देवदास और बनाने वाले थे संजय लीला भंसाली मुंबई के लोग भंसाली को उनकी फिल्मों में लगने वाले सेट की वजह से जानते हैं, मुकेश भी जानता था, खुद को देवदास के सेट पर सेट कर लिया। शिफ्ट में काम मिला और काम था सेट बनान,. हर छह घंटे की शिफ्ट के 500 रुपये मिलते थे। मुकेश को पैसा दिखा, तो काम भी बढ़ा दिया. एक दिन में तीन-तीन शिफ्टें करने लगा. 900 रुपये महीना कमाने वाला लड़का अब हर रोज 1500 रुपये कमाने लगा, लेकिन सपने देखने वाला लड़का कब तक मज़दूरी करता, कुछ ही दिनों में वो मज़दूर से सुपरवाइजर बन गया। अपने जैसे मज़दूरों के काम देखने लगा और काम देखते-देखते उसने खुद से मज़दूर रखने शुरू कर दिए। अब वो कॉन्ट्रैक्टर हो गया था, अब पैसे दोनों तरफ से आने लगे, कंपनी पैसा देती थी कि मज़दूर लाओ, मज़दूर पैसे देते थे कि कंपनी में काम लगवाओ, काम चल गया और काम चला तो पैसे भी आने लगे.

कौन है मुकेश साहनी


फिर साल आया 2008. लड़के को मुंबई में आए 9 साल हो गए थे. फिल्मी दुनिया में भी सात साल होने को थे। अब लड़के को खुद की कंपनी बनानी थी, बनाई भी और नाम रखा मुकेश सिनेवर्ल्ड लिमिटेड, कंपनी छोटी थी, लेकिन जुनून बड़ा। फिल्म प्रोड्यूस की. हिंदी की नहीं मिली तो भोजपुरी की ही की. फिल्म थीएक लैला तीन छैला’, लेकिन फिल्म को कामयाबी हाथ नहीं लगी, फेल हो गई बॉक्स ऑफिस पर। ये सब करते कराते 2008 का छठ पर्व गया था। बिहार का सबसे बड़ा त्योहार, हर आम बिहारी की तरह मुकेश सहनी को भी घर जाना था, तो चले गए घर छठ मना

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लोकसभा और राज्यसभा में फर्क तक मालूम था
गांव अब भी वैसा ही था, जैसा वो बचपन से देखते आए थे. लेकिन वो खुद 900 रुपये महीने की मज़दूरी करने वाले से एक कंपनी के मालिक हो गए थे। गांव के लिए दिल पसीज गया. कुछ काम करने की सोची, पहले गांव के लेवल पर और फिर जिला के लेवल पर काम करने लगे, फिल्मी दुनिया का भी काम चलता रहा और इधर दरभंगा की सियासत में भी जोर आजमाइश शुरू हो गई। ये सब करते कराते साल गया 2014, लोकसभा चुनाव का साल, गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी के देश का प्रधानमंत्री बनने का साल। बीजेपी को सबसे बड़ी जीत मिलने का साल, कांग्रेस को सबसे बड़ी हार मिलने का साल, और इसी साल मुकेश सहनी ने एक आयोजन किया था। निषाद सम्मलेन का बकौल मुकेश सहनी, वो ये सब कर तो रहे थे, लेकिन उन्हें पता नहीं था कि लोकसभा और राज्यसभा में फर्क क्या होता है,परन्तु आयोजन सफल रहा और सफल आयोजन पर निगाह पड़ी बीजेपी और जदयू दोनों की। जिन्होंने एक साथ सियासी खिचड़ी पकाई थी और जिनके रास्ते अलग-अलग थे। मुकेश को किसी एक को चुनना था, क्योंकि अब वो सिर्फ मुकेश नहीं रह गए थे, अब उनकी खुद की एक पहचान थी, लोग उन्हें सन ऑफ मल्लाह कहने लगे थे। ऐसे में सहनी ने बीजेपी को चुना, बीजेपी को बिहार में भी 22 सीटें मिलीं थीं। फिर 2015 में बिहार में विधानसभा के चुनाव होने थे। दशकों से दुश्मन रहे लालू और नीतीश अब दोस्त थे, दशकों से दोस्त रही बीजेपी अब नीतीश की दुश्मन थी. चुनाव हुए तो मुकेश सहनी ने बीजेपी के पक्ष में प्रचार किया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंच पर जगह मिली.

कौन है मुकेश साहनी

बीजेपी चुनाव हार गई, लेकिन सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी पर अब बीजेपी के बड़े नेताओं की नज़र पड़ गई थी, नज़र तो सहनी की भी पड़ी थी, आरक्षण पर, निषाद समुदाय को अनुसूचित जनजाति में आरक्षण को लेकर आवाज उठानी शुरू की। बीजेपी के नेताओं से मिले, लेकिन निराशा ही हाथ लगी, इस बीच पुराने दोस्त यानी कि बीजेपी और जदयू दुश्मनी भुलाकर दोस्त बन चुके थे। सत्ता में हिस्सेदारी भी मिल गई थी, इस बीच बिहार सरकार ने कैबिनेट से निषाद समुदाय के आरक्षण को लेकर प्रस्ताव पास कर दिया। केंद्र को भेजा, लेकिन वहां से ठंडे बस्ते में चला गया. फिर शुरू हुई मुकेश सहनी की बगावत. खुलेआम बगावत की परन्तु बगावत भी काम नहीं आई और फिर वही हुआ, जो हर नेता करता है, यानी पार्टी बनाना। नवंबर 2018 में मुकेश सहनी ने पार्टी बना ली। नाम रखा VIP, पूरा नाम विकासशील इंसान पार्टी, अगले ही महीने से दौरा शुरू किया, गाड़ी नहीं, हेलिकॉप्टर से। दिसंबर में सुपौल, चंपारण, खगड़िया, अररिया और भागलपुर जैसे क्षेत्रों में उनका हेलिकॉप्टर उड़ता रहा. वो सुर्खियां बटोरते रहे।
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